स्वप्न मेरे: वो इक हादसा भूलना चाहता हूँ ...

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

वो इक हादसा भूलना चाहता हूँ ...

समय को वहीं रोकना चाहता हूँ
में बचपन में फिर लौटना चाहता हूँ

में दीपक हूँ मुझको खुले में ही रखना
में तूफ़ान से जूझना चाहता हूँ

कहो दुश्मनों से चलें चाल अपनी
में हर दाव अब खेलना चाहता हूँ

में पतझड़ में पत्तों को खुद तोड़ दूंगा
हवा को यही बोलना चाहता हूँ

हवाओं की मस्ती, है कागज़ की कश्ती
में रुख देख कर मोड़ना चाहता हूँ

तुझे मिल के मैं जिंदगी से मिला पर
वो इक हादसा भूलना चाहता हूँ

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