स्वप्न मेरे: कचरे के डस्टबिन में, सच्चाइयां मिलेंगी ...

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

कचरे के डस्टबिन में, सच्चाइयां मिलेंगी ...

पत्थर मिलेंगे टूटे, तन्हाइयां मिलेंगी
मासूम खंडहरों में, परछाइयां मिलेंगी

इंसान की गली से, इंसानियत नदारद
मासूम अधखिली से, अमराइयां मिलेंगी

कुछ चूड़ियों की किरचें, कुछ आंसुओं के धब्बे
जालों से कुछ लटकती, रुस्वाइयां मिलेंगी

बाज़ार में हैं मिलते, ताली बजाने वाले
पैसे नहीं जो फैंके, जम्हाइयां मिलेंगी

पहले कहा था अपना, ईमान मत जगाना
इंसानियत के बदले, कठिनाइयां मिलेंगी

बातों के वो धनी हैं, बातों में उनकी तुमको
आकाश से भी ऊंची, ऊंचाइयां मिलेंगी

हर घर के आईने में, बस झूठ ही मिलेगा
कचरे के डस्टबिन में, सच्चाइयां मिलेंगी



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