स्वप्न मेरे: नज़्म मेरी

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

नज़्म मेरी

कई बार गिरी
कई बार उठी

शब्दों के
हाथों से निकली
चिंदी चिंदी
हवा में बिखरी
पहलू में
कई बार रुकी

नज़्म मेरी

मुझे मेरी नज़्म ने कहा

मैं तेरे सामने
ज़िंदा खड़ी हूँ
जिस्म की खुश्बू में लिपटी
साँस लेती
बात करती

तू काहे
ढूंढता है मुझे
काग़ज़ के पुराने पन्नों में

71 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे मेरी नज़्म ने कहा

    मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती

    तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में

    Ati Sundar Naswa sahaab !

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  2. तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में


    -कितनी अहम बात कह गई आपसे आपकी नज़्म!!

    वाह!!

    हो कहाँ आजकल? दिखते ही नहीं.

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  3. मैं तेरे सामने...ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती...बात करती...

    बहुत खूब रही नज़्म से ये मुलाकात.

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  4. मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती

    तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में

    क्या क्या कह जाते हैं आप छोटी छोटी बातों में बिना शब्दों के ढेरों शब्द ज़ेहन में फूल के अनेक रंगों की तरह महका जाते हैं ..लाजबाब हैं!!!

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  5. नज़्म आपकी काश ! मेरी प्रेयसी की सहेली बन जाए ...............................

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  6. मुझे मेरी नज़्म ने कहा

    मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती
    बेहतरीन। लाजवाब।

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  7. ...बहुत सुन्दर ...बेहतरीन रचना !!!

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  8. नज़्म से बात करना, उसे उटते गिरते देखना और फिर ---- शायद कोरी कल्पना नहीं जिन्दा एहसास होती होगी.
    नज़्म के जिस्म की खुश्बू यहाँ तक आ रही है
    बहुत खूबसूरत

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  9. बहुत खूबसूरत ख्याल...नज़्म सच में खुशबू बन मन में बसी होती है...बहुत खूब

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  10. मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती

    तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में

    बहुत खूब...गहरी बात कह गए है इन पंक्तियों में

    जवाब देंहटाएं
  11. तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में
    Kitna sahi kaha..ham antarmukhi nahi hote, bahirmukhihi,bahirmukhi...

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  12. सादर वन्दे !
    ठीक उसके आने की आहट और मेरे कलम का रुकना
    कागज पर बिखरी स्याही, सब नज्म ही तो है .
    रत्नेश त्रिपाठी

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  13. मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती

    तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में
    aakhri ye panktiyaan bahut hi khoobsurat lagi ,laazwaab sach hi hai .

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  14. "उठती है, गिरती है, सम्भलती है, फिसलती है
    के पकड के रखूं तुझे कैसे, जिन्दगी तेज़ दौडती है।"
    ये नज़्म ही तो जिन्दगी की तरह ही है, दिगम्बरजी , बहुत खूब लिखा है आपने। आदमी जब बूढा होता है तो अपने अतीत में, अतीत की बातें ज्यादा करता है, या वो ढूंढ्ता है पुराना पल। किंतु नज़्म (जिन्दगी) तब भी उसके सामने होती है। भाई मैं तो अपनी तरह ही सोचता हूं, और अक्सर आपकी नज़्मों में डूबता-उतरता हूं।

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  15. बहुत खूबसूरत ख्याल...नज़्म सच में खुशबू बन मन में बसी होती है...बहुत खूब

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  16. वाह बहुत ही लाजवाब बात कही आपने.

    रामराम.

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  17. मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती
    ......vah, bahut sundar......

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  18. साँस लेती
    बात करती

    वाह, क्या संवेदना है ।

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  19. waah digambhar ji , waah , kya kahe .. aapne to hum saare kaviyo ki man ki baat ko kah diya ...waah ji , bahut hi acche shabdo me kavi ki nazm ko qaid kiya hai.. meri badhyi sweekar kare .. aur haan deri se aane ke liye maafi ...

    aabhar

    vijay
    - pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  20. मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती

    तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में....waah

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  21. मोहतरम योगेश साहब
    मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती

    तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में
    लफ्ज़ और एहसास जब मिलते हैं तो नज़्म बनती है........आपकी नज़्म इसी सम्मिलन का प्रतीक है! शानदार रचना के लिए दिली मुबारकबाद

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  22. शब्दों के
    हाथों से निकली
    चिंदी चिंदी
    हवा में बिखरी
    पहलू में
    कई बार रुकी

    नज़्म मेरी
    बहुत ही खूबसूरत रचना
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  23. अहसास कब अलग होते हैं खुद से...कभी नज़्म की शक्ल में कभी खुद ज़िंदगी की प्रति कृति बन झकझोरने आ ही जाते हैं.
    इन भावों को शब्दों का जामा पहना दिया और आप की नज़्म बन गयी...बहुत खूबसूरत प्रस्तुति.

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  24. मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती

    तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में
    अजी इतनी खुबसूरत और खुशबूदार नज़्म हो तो ढूढने की वाकई जरुरत नहीं. वाह जी वाह क्या हसीं नज़्म है आपकी मज़ा आ गया

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  25. lajawaab rachna...
    itni behtareen rachna ke liye badhai....
    mere blog par is baar..
    वो लम्हें जो शायद हमें याद न हों......
    jaroor aayein...

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  26. आप जैसे पारखी के सामने नज्म साकार हो जाती है ! बहुत सुंदर ! बधाई !

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  27. आपकी इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा यहाँ भी तो है-
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html

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  28. अच्छी नज़्म।
    कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूँढे वन माहीं।
    अक्सर ज़िंदगी सामने खड़ी होती है और हम जाने कहाँ-कहाँ उसे तलाशते रहते हैं।

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  29. मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती

    तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में
    .... bahut sundar bhavavykti...

    जवाब देंहटाएं
  30. शब्दों के
    हाथों से निकली
    चिंदी चिंदी
    हवा में बिखरी
    पहलू में
    कई बार रुकी

    नज़्म मेरी

    waah bahut ki khoobsurat nazm

    जवाब देंहटाएं
  31. शब्दों के
    हाथों से निकली
    चिंदी चिंदी
    हवा में बिखरी
    पहलू में
    कई बार रुकी
    waah.........

    जवाब देंहटाएं
  32. तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में

    great lines

    जवाब देंहटाएं
  33. मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती

    तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में
    बहुत ही सुंदर ।

    जवाब देंहटाएं
  34. तू काहे
    ढूंढता है मुझे
    काग़ज़ के पुराने पन्नों में
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब रचना!

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  35. बहुत ही सुन्दर रचना । बेहतरीन ।

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  36. आपने जो नज़्म को कस्तूरी बना कर लफ्ज़ का जामा पहनाया है, क़ाबिले तारीफ है...

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  37. आप कहीँ भी ढुंढेँ मगर हमेँ तो आपकी नज्मोँ का पता मालूम है...........

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  38. मम से ममेत्तर तक पहुंचती रचना। उत्कृष्ट और प्रभावी। नासवां जी बधाई।

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  39. मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती

    बहुत ही सुंदर!!

    जवाब देंहटाएं
  40. मोको कहां ढूंढे बन्दे ,मै तो तेरे पास मे

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  41. mere blog par is baar..
    नयी दुनिया
    jaroor aayein....

    जवाब देंहटाएं
  42. नज्म का उठना गिरना दिल की भावनाओं का उतार चढ़ाव है. मन बावरा जाने कब क्या सोचने लगता है. पल में आसमा पर तो पल में पाताल तक पहूंच जाता है...

    आप बेहतरीन लिखती हैं...

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  43. मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती
    - नज्म की जीवन्तता !

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  44. भाई गरीबों पर दया करना सीखें. इतना अच्छा (अब कितना बताऊँ) लिखने से आपको नहीं लगता कि अब आप और सिर्फ आप ही चर्चा में रहेंगे. यानी हमा-शुमा को अब कोई पूछने वाला नहीं. थोडा ख़राब नहीं लिख सकते थे क्या! ये जो इतने ढेर सारे लोगों ने मुझ से पहले कमेन्ट दिए हैं, क्या ये लोग अपने सुझाव देकर इसकी धार थोड़ी कुंद नहीं करा सकते थे!
    मैं इस कविता से स्तब्ध हूँ. क्या नज्म का पर्सनिफिकेशन इतने खूबसूरत अंदाज़ से भी किया जा सकता है. बहुत बुझे मन से बधाई दे रहा हूँ.
    ऐसी नज्म लिख कर आपने मेरा कबाड़ा कर दिया.

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  45. मैं तेरे सामने
    ज़िंदा खड़ी हूँ
    जिस्म की खुश्बू में लिपटी
    साँस लेती
    बात करती
    कमाल की नज़्म. बधाई.

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  46. यही थी क्या .....??

    बहुत खूबसूरत है ....अब संभाल कर रखियेगा .......!!

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है